Wednesday, September 10, 2025

यहाँ

यहाँ पर ख़त्म हो जाती हैं राहें
बिखर जाती हैं सब इम्कानगाहें 

जुनूँ बढ़ता चला जाता है हर सू 

अँधेरे खोलकर चलते हैं बाहें 


धुंधलका चीरकर आने लगी हैं 

पिघलती डूबती किस की कराहें 


परिंदे खिल्वतों से टूट निकले 

फड़कती जा रहीं पुरज़ोर आहें 


ये मंज़र क्या है मुश्फ़िक़ कौन हो तुम

तुम्हें हासिल नहीं क्यों कर पनाहें  


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अनंत ढवळे “मुश्फ़िक़”



یہاں پر ختم ہو جاتی ہیں راہیں 

بکھر جاتی ہیں سب امکان گاہیں 


جنوں بڑھتا چلا جاتا ہے ہر سو 

اندھیرے کھول کر چلتے ہیں باہیں 


دھندلکا چیرکر آنے لگی ہیں 

پگھلتی ڈوبتی کس کی کراہیں 


پَرِندے خلوتوں سے ٹوٹ نکلے 

پَڑکْتِی جا رہی پرزور آہیں 


یہ منظر کیا ہے مُشفِق  کون ہو تم 

تمہیں کیوں کر نہیں ملتی پناہیں 


مُشفِق

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