आओ मिलकर होश संभालें एक दूजे की पीर उठालें
सीधे सादे लोग हैं ये सब
कुछ इन के आदाब चुरालें
कुछ आसाँ बन जाए जीवन
सुनने की गर आदत डालें
एक पुराना रंज पड़ा है
इस को अपना यार बनालें
दुनिया में हो जाए उजाला अपने-अपने दीप जला लें
—
अनंत ढवळे “मुश्फ़िक़”
آؤ مِل کر ہوش سنبھالیں
اک دُوجے کی پیر اُٹھا لیں.
سیدھے سادے لوگ ہیں یہ سب
کچھ اِن کے آداب چرالیں
کُچھ آساں بن جائے جیون
سُننےکی گر عادت ڈالیں
دُنْیا میں ہو جائے اُجالا اپنے اپنے دیپ جلالیں
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