Wednesday, September 10, 2025

यहाँ

यहाँ पर ख़त्म हो जाती हैं राहें
बिखर जाती हैं सब इम्कानगाहें 

जुनूँ बढ़ता चला जाता है हर सू 

अँधेरे खोलकर चलते हैं बाहें 


धुंधलका चीरकर आने लगी हैं 

पिघलती डूबती किस की कराहें 


परिंदे खिल्वतों से टूट निकले 

फड़कती जा रहीं पुरज़ोर आहें 


ये मंज़र क्या है मुश्फ़िक़ कौन हो तुम

तुम्हें हासिल नहीं क्यों कर पनाहें  


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अनंत ढवळे “मुश्फ़िक़”



یہاں پر ختم ہو جاتی ہیں راہیں 

بکھر جاتی ہیں سب امکان گاہیں 


جنوں بڑھتا چلا جاتا ہے ہر سو 

اندھیرے کھول کر چلتے ہیں باہیں 


دھندلکا چیرکر آنے لگی ہیں 

پگھلتی ڈوبتی کس کی کراہیں 


پَرِندے خلوتوں سے ٹوٹ نکلے 

پَڑکْتِی جا رہی پرزور آہیں 


یہ منظر کیا ہے مُشفِق  کون ہو تم 

تمہیں کیوں کر نہیں ملتی پناہیں 


مُشفِق

बोरियत

मुसलसल बोरियत है और क्या है  अकेलेपन की लत है और क्या है 

मरेंगे डूब अपनी खिल्वतों में 

हमारी आक़िबत है और क्या है


बहुत बेकार हैं ये चाँद तारे 

बना दी सर पे छत है और क्या है


किताबों में मरे रहना हमेशा 

बला की हिस्सियत है और क्या है  


ख़यालों में मिली जन्नत हमें भी 

ख़याली मग़फ़िरत है और क्या है  


मिलीं दो चार साँसें वो भी जानम  

तुम्हारी मिलकियत है और क्या है


ये जो तुमनें बुना है जाल मुश्फ़िक़ 

खयालों की परत है और क्या है


अनंत ढवळे मुश्फ़िक़




मुसलसल बोरियत है और क्या है  अकेलेपन की लत है और क्या है 

مُسَلْسَل بورِیَت ہے اَور کیا ہے اکیلےپن کی لت ہے اَور کیا ہے

मरेंगे डूब अपनी खिल्वतों में 

हमारी आक़िबत है और क्या है


مرینگے ڈُوب اپنی خِلوَتوں میں ہماری عاقِبَت ہے اَور کیا ہے


बहुत बेकार हैं ये चाँद तारे 

बना दी सर पे छत है और क्या है


بہت بیکار ہیں یہ چاند تارے بنا دی سر پی چھٹ ہے اَور کیا ہے


किताबों में मरे रहना हमेशा 

बला की हिस्सियत है और क्या है  


کتابوں میں مرے رہنا ہمیشہ بلا کی حِسِّیَت ہے اَور کیا ہے


ख़यालों में मिली जन्नत हमें भी 

ख़याली मग़फ़िरत है और क्या है  


خیالوں میں مِلی جَنَّت ہمیں بھی خیالی مَغْفِرَت ہے اَور کیا ہے


मिलीं दो चार साँसें वो भी जानम  

तुम्हारी मिलकियत है और क्या है

مِلیِں دو چار سانسیں وو بھی جانَم تمھاری مِلْکِیَّت ہے اَور کیا ہے


ये जो तुमनें बुना है जाल मुश्फ़िक़ 

खयालों की परत है और क्या है


یہ تم نے جو بُنا ہے جال مُشفِق خیالوں کی پرت ہےاَور کیا ہے


अनंत ढवळे मुश्फ़िक़

اننت ڈھَوَلے مُشفق

Sunday, September 7, 2025

WIP

तेरा ध्यान मिथ्या, सभी ज्ञान मिथ्या
लबों तक जो आई समझ जान मिथ्या 


Anant

(Work in progress)

Saturday, September 6, 2025

आओ मिलकर होश संभालें

आओ मिलकर होश संभालें  एक दूजे की पीर उठालें 

सीधे सादे लोग हैं ये सब  

कुछ इन के आदाब चुरालें 


कुछ आसाँ बन जाए जीवन

सुनने की गर आदत डालें


एक पुराना रंज पड़ा है 

इस को अपना यार बनालें 


दुनिया में हो जाए उजाला अपने-अपने दीप जला लें 




अनंत ढवळे “मुश्फ़िक़”



آؤ مِل کر ہوش سنبھالیں 

اک دُوجے کی پیر اُٹھا لیں. 


سیدھے سادے لوگ ہیں یہ سب 

کچھ اِن کے آداب چرالیں 


کُچھ آساں بن جائے جیون

سُننےکی گر عادت ڈالیں


ایک پرانا رنج پڑا ہے
اِس کو اپنا یار بنالیں  

دُنْیا میں ہو جائے اُجالا اپنے اپنے دیپ جلالیں   


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اننت ڈھَوَلے مُشفق


Thursday, September 4, 2025

अब मुझ से ये कैसी अदावत

हाँ उन जैसा ही दिखता हूँ पिछली नस्लों का टुकड़ा हूँ

भेद नहीं था मेरे मन में

सोचा था मैं भी दरिया हूँ


इक दुनिया है मेरे अंदर

मैं उस में केवल रहता हूँ


कहता हूं जंजीरें तोडो

हाँ मैं उकसाने आया हूँ


हर इंसां कुछ ढूंढ रहा है कहता है मैं नचिकेता हूँ


अब मुझ से ये कैसी अदावत

मैं तो कब का बीत चुका हूँ


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अनंत ढवळे


ہاں ان جیسا ہی دِکھتا ہوں 

پِچْھلی  نصلوں کا ٹُکڑا ہوں

  


بھید نہیں تھا میرے من میں 

سوچا تھا میں بھی دریا ہوں 


اک دنیا ہے میرے اندر 

میں اس میں کیول رہتا ہوں 


کہتا ہوں زنجیریں توڑو 

ہان میں اکسانے آیا ہوں 


ہر انسا کچھ ڈھونڈ رہا ہے کہتا ہے میں نچیکیتا ہوں 

اب مجھ سے یہ کیسی عداوت 

میں تو کب کا بیت چکا ہوں

اننت ڈھَوَلے مُشفق


Wednesday, August 20, 2025

पडलीत किती मागे शेते हिरवाळी 
पाहतो जिथे घनदाट पांढरी आहे

जगण्याची सारी घालमेल उरलेली 
माझ्यात पुन्हा येऊन थांबली आहे 

वैतरणा माझ्या खोल अंतरामधली
बुडवेल एकदा मला माहिती आहे  


अनंत ढवळे 

Friday, August 15, 2025

An Urdu Ghazal

 کوئی کہدے تو بس بگڑتا ہوں 

ورنہ ہر گام پر پھسلتا ہوں 


پھر اسی راہ پر نکلتا ہوں 

پھر اسی کھیل میں الجھتا ہوں


اِس سے بہتر ہو کیا کے خوابوں میں 

اُس سے ملتا ہوں بات کرتا ہوں 


دھوپ ایسی سراب بھی پگھلے 

خوشق دریا سے گُھونٹ بھرتا ہوں 


دن سرکتا ہے رات ڈھلتی ہے 

ایک میں ہوں کے سر پٹکتا ہوں 


بس کے آساں ہے مجھ کو  سمجھانا 

ہر کھلونے سے جو بہلتا ہوں 


اننت ڈھَوَلے





कोई कह दे तो बस बिगड़ता हूँ
वरना हर गाम पर फिसलता हूँ 

फिर उसी राह पर निकलता हूँ
फिर उसी खेल में उलझता हूँ  

इस से बेहतर हो क्या के ख़्वाबों में
उस से मिलता हूँ बात करता हूँ 

धूप ऐसी सराब भी पिघले
ख़ुश्क़ दरिया से घूँट भरता हूँ 

दिन सरकता है रात होती है
एक मैं हूँ के सर पटकता हूँ 

बस के आसाँ है मुझको समझाना
हर खिलौने से जो बहलता हूँ


अनंत ढवळे