Saturday, July 17, 2010

सुकून

धूल मिट्टी की मानिंद
हमारे दिन ओ रात
यहां से वहां गुजरते रहते हैं
भटकती हुई हवा,
उतनी ही बेमकसद
जितने बेउन्वां हम

हमारे अतराफ कांच की दीवारोंका
एक समुचा शह्र

इस चकाचौंध में
खो चुके हैं
अपने होने के तमाम बाइस

इन दिनों
कोई छोटासा पौधा भी
किसी पुराने हमनफस की मानिंद
सुकून दे जाता है...

अनंत

A Ghazal

 A Ghazal .. In heart's alleys, a singular halo of sadness remains  In a little nook of mind, a lingering darkness remains Forgotten sho...