Sunday, June 27, 2010

सोचता हूं

सोचता हूं किधर चली है हयात
पारा पारा बिखर चली है हयात

गर्म सांसें हैं सुर्खहहैं आंखें
जाने किस आग पर चली हयात

मैंने चाही थी गुफ्तगू लेकीन
बात अपनी ही कर चली है हयात

अनंत ढवळे ( आजकल उर्दू - डीसेंबर २००९ )

A Ghazal

 A Ghazal .. In heart's alleys, a singular halo of sadness remains  In a little nook of mind, a lingering darkness remains Forgotten sho...