आँख खोलूँ तो रूप उसका है
वो जो जी में समाए बैठा है
रंग उसके हैं है उसी से धनक
आँख मूंदूँ तो ध्यान उसका है
उसकी बातों से हैं रंगीं रातें
उसकी आँखों से दिन सुनहरा है
कोई ढूंढे तो किस तरह उस को
वो जो सहरा के बीच दरिया है
अनंत ढवळे
آنکھ کھولوں تو روپ اسکہ ہے
وہ جو جی میں سمایہ بیٹھا ہے
رنگ اسکے ہیں ہے اسی سے دھنک
آنکھ مندوں تو دھیان اسکا ہے
اسکی باتوں سے ہیں رنگیں راتیں
اسکی آنکھوں سے دن سنہرا ہے
کوئی ڈھونڈھے تو کس طرح اسکو
وہ جو صحرا کے بیچ دریا ہے
Anant Dhavale
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