Wednesday, June 19, 2024

गझल


पडोत जितके पडायचे काळाचे घण

माझ्यामधले उरो जरासे चांगुलपण 


इतके साधे सोपे हे संबंध जसे 

पानांना दवबिंदूंचे की आकर्षण  


वेळ घालवत बसण्याची ही अजब तऱ्हा 

मोजत बसलो आहे माळवदाचे खण


काय आपल्या सफरींचे कौतूक तरी 

ह्या रस्त्याने आले गेले कितीक जण  


कशास इतकी स्पष्टीकरणे, कबूल कर  

ताळतंत्र सुटलेले होते, झाले म्हण  


जागोजागी रेलचेल पाणवठयांची

तहान माझी  भागवणारा कोठे पण 


तहान त्याची इतकी मोठी आहे की 

समुद्र करतॊ  आहे बिंदू पाचारण  



-


अनंत ढवळे 

Sunday, June 2, 2024

WIP - Work in Progress

आँख खोलूँ तो रूप उसका है 

वो जो जी में समाए बैठा है 


रंग उसके हैं है उसी से  धनक 

आँख मूंदूँ तो ध्यान उसका है 


उसकी बातों से हैं रंगीं रातें

उसकी आँखों से दिन सुनहरा है


कोई ढूंढे तो किस तरह उस को 

वो जो सहरा के बीच दरिया है 


अनंत ढवळे 


آنکھ کھولوں تو روپ اسکہ ہے 

وہ جو جی میں سمایہ بیٹھا ہے 


 رنگ اسکے ہیں ہے اسی سے دھنک

آنکھ مندوں تو دھیان اسکا ہے  


اسکی باتوں سے ہیں رنگیں راتیں 

اسکی آنکھوں سے دن سنہرا ہے 


کوئی ڈھونڈھے تو کس طرح اسکو 

وہ جو صحرا  کے بیچ دریا ہے 


Anant Dhavale 


A Ghazal

 A Ghazal .. In heart's alleys, a singular halo of sadness remains  In a little nook of mind, a lingering darkness remains Forgotten sho...