1 اَسْرار
.
اننت دھولے
असरार
आइये
अपने अपने असरार
खोल दें
बन जाएँ बादे सबा
ओढ़ लें सांझ का
नीलापन
साल-हा-साल मुंतज़र खड़े
पेड़ों का
इंतज़ार बन जाएँ
मराठी गझल आणि कविता
मराठी गझल आणि कविता - अनंत ढवळे / Marathi Gazals and Poems by Anant Dhavavle Copyright © Anant Dhavale; Please do not reprint/use in any other media format without proper permission. Author contact - anantdhavale@gmail.com. A blog committed to Marathi Gazal and Poems
1 اَسْرار
.
اننت دھولے
असरार
आइये
अपने अपने असरार
खोल दें
बन जाएँ बादे सबा
ओढ़ लें सांझ का
नीलापन
साल-हा-साल मुंतज़र खड़े
पेड़ों का
इंतज़ार बन जाएँ
यहाँ पर ख़त्म हो जाती हैं राहें
बिखर जाती हैं सब इम्कानगाहें
जुनूँ बढ़ता चला जाता है हर सू
अँधेरे खोलकर चलते हैं बाहें
धुंधलका चीरकर आने लगी हैं
पिघलती डूबती किस की कराहें
परिंदे खिल्वतों से टूट निकले
फड़कती जा रहीं पुरज़ोर आहें
ये मंज़र क्या है मुश्फ़िक़ कौन हो तुम
तुम्हें हासिल नहीं क्यों कर पनाहें
-
अनंत ढवळे “मुश्फ़िक़”
یہاں پر ختم ہو جاتی ہیں راہیں
بکھر جاتی ہیں سب امکان گاہیں
جنوں بڑھتا چلا جاتا ہے ہر سو
اندھیرے کھول کر چلتے ہیں باہیں
دھندلکا چیرکر آنے لگی ہیں
پگھلتی ڈوبتی کس کی کراہیں
پَرِندے خلوتوں سے ٹوٹ نکلے
پَڑکْتِی جا رہی پرزور آہیں
یہ منظر کیا ہے مُشفِق کون ہو تم
تمہیں کیوں کر نہیں ملتی پناہیں
مُشفِق
मुसलसल बोरियत है और क्या है अकेलेपन की लत है और क्या है
मरेंगे डूब अपनी खिल्वतों में
हमारी आक़िबत है और क्या है
बहुत बेकार हैं ये चाँद तारे
बना दी सर पे छत है और क्या है
किताबों में मरे रहना हमेशा
बला की हिस्सियत है और क्या है
ख़यालों में मिली जन्नत हमें भी
ख़याली मग़फ़िरत है और क्या है
मिलीं दो चार साँसें वो भी जानम
तुम्हारी मिलकियत है और क्या है
ये जो तुमनें बुना है जाल मुश्फ़िक़
खयालों की परत है और क्या है
अनंत ढवळे मुश्फ़िक़
मुसलसल बोरियत है और क्या है अकेलेपन की लत है और क्या है
مُسَلْسَل بورِیَت ہے اَور کیا ہے اکیلےپن کی لت ہے اَور کیا ہے
मरेंगे डूब अपनी खिल्वतों में
हमारी आक़िबत है और क्या है
مرینگے ڈُوب اپنی خِلوَتوں میں ہماری عاقِبَت ہے اَور کیا ہے
बहुत बेकार हैं ये चाँद तारे
बना दी सर पे छत है और क्या है
بہت بیکار ہیں یہ چاند تارے بنا دی سر پی چھٹ ہے اَور کیا ہے
किताबों में मरे रहना हमेशा
बला की हिस्सियत है और क्या है
کتابوں میں مرے رہنا ہمیشہ بلا کی حِسِّیَت ہے اَور کیا ہے
ख़यालों में मिली जन्नत हमें भी
ख़याली मग़फ़िरत है और क्या है
خیالوں میں مِلی جَنَّت ہمیں بھی خیالی مَغْفِرَت ہے اَور کیا ہے
मिलीं दो चार साँसें वो भी जानम
तुम्हारी मिलकियत है और क्या है
مِلیِں دو چار سانسیں وو بھی جانَم تمھاری مِلْکِیَّت ہے اَور کیا ہے
ये जो तुमनें बुना है जाल मुश्फ़िक़
खयालों की परत है और क्या है
یہ تم نے جو بُنا ہے جال مُشفِق خیالوں کی پرت ہےاَور کیا ہے
अनंत ढवळे मुश्फ़िक़
اننت ڈھَوَلے مُشفق
आओ मिलकर होश संभालें एक दूजे की पीर उठालें
सीधे सादे लोग हैं ये सब
कुछ इन के आदाब चुरालें
कुछ आसाँ बन जाए जीवन
सुनने की गर आदत डालें
एक पुराना रंज पड़ा है
इस को अपना यार बनालें
दुनिया में हो जाए उजाला अपने-अपने दीप जला लें
—
अनंत ढवळे “मुश्फ़िक़”
آؤ مِل کر ہوش سنبھالیں
اک دُوجے کی پیر اُٹھا لیں.
سیدھے سادے لوگ ہیں یہ سب
کچھ اِن کے آداب چرالیں
کُچھ آساں بن جائے جیون
سُننےکی گر عادت ڈالیں
دُنْیا میں ہو جائے اُجالا اپنے اپنے دیپ جلالیں
हाँ उन जैसा ही दिखता हूँ पिछली नस्लों का टुकड़ा हूँ
भेद नहीं था मेरे मन में
सोचा था मैं भी दरिया हूँ
इक दुनिया है मेरे अंदर
मैं उस में केवल रहता हूँ
कहता हूं जंजीरें तोडो
हाँ मैं उकसाने आया हूँ
हर इंसां कुछ ढूंढ रहा है कहता है मैं नचिकेता हूँ
अब मुझ से ये कैसी अदावत
मैं तो कब का बीत चुका हूँ
-
अनंत ढवळे
ہاں ان جیسا ہی دِکھتا ہوں
پِچْھلی نصلوں کا ٹُکڑا ہوں
بھید نہیں تھا میرے من میں
سوچا تھا میں بھی دریا ہوں
اک دنیا ہے میرے اندر
میں اس میں کیول رہتا ہوں
کہتا ہوں زنجیریں توڑو
ہان میں اکسانے آیا ہوں
اب مجھ سے یہ کیسی عداوت
اننت ڈھَوَلے مُشفق